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श्री अमरेंद्र पति त्रिपाठी
माननीय सदस्य (न्यायिक)
बिहार भूमि न्यायाधिकरण बिहार, पटना

भूमि संबंधी विवादों का विभिन्न न्यायालयों में लंबित रहना न सिर्फ शीर्ष न्यायालयों के लिए अपितु, सरकार के लिए भी महती चिंता का विषय बना हुआ है | यह निर्विवाद सत्य है कि प्रत्येक भूमि विवाद तीन चार फौजदारी मामलो की जननी होती है और यही कारण है कि पुरे भारतवर्ष में लंबित वादों की संख्या निष्पादन की तुलना में बहुत अधिक है | संभवतः इसका आभास संविधान निर्माताओ को था इसलिए भारतीय संविधान में धारा 323 (बी) में न्यायाधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया ताकि अन्य विवादों के अतिरिक्त भूमि विवादों का निष्पादन त्वरित गीत से कम खर्च में बिना अतिशय औपचारिकताओं के किया जा सके | निशिचत रूप से यह एक दूरदर्शिता से परिपूत प्रयास है और सुखद परिणाम भी दृष्टिगत हो रहा है

श्री रवीन्द्र पटवारी
माननीय सदस्य (न्यायिक)
बिहार भूमि न्यायाधिकरण बिहार, पटना

राज्य के भिन्न-भिन्न न्यायालयों में अधिसंख्य भूमि विवादों के लम्बी अवधि तक अनिर्णीत रहने के कारण लोगों में फैल रहे असंतोष को दूर करने के निमित्त राज्य सरकार ने भूमि विवादों के त्वरित निष्पादन हेतु बिहार भूमि न्यायाधिकरण का सृजन एक समेकित सर्वोच्च न्याय मंच के रूप में किया है, निश्चय ही कृषि के विकास की दिशा में उठाया गया स्वागत योग्य एक ठोस कदम है। बिहार भूमि न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा 9 में वैसे अधिनियमों एवं हस्तकों की चर्चा है, जिनमें सक्षम पदाधिकारी द्वारा पारित अन्तिम आदेश के विरूद्ध न्यायाधिकरण को आवेदन प्राप्त करने की शक्ति निहित है।


वादों के लम्बी अवधि तक सुनवाई एवं निर्णय हेतु लम्बित रहने का कारण सामान्यतया वादों की बहुलता एवं कार्य-संस्कृति का अभाव होता है। ऐसा अकसरहाँ सुनने में आता है कि जीविकोपार्जन का दैनिक कार्य छोड़कर न्यायालय का चक्कर लगाते-लगाते लोग उब जाते हें और कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं हिंसा पर उतारू हो जाते हैं और कभी-कभी तो ऐसी लोमहर्षक घटनाओं को अंजाम दे देते हैं कि समाज का सिर शर्म से झुक जाता है। हिंसा की प्रवृति समाज के विकृत चेहरे को दर्शाती है, इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है, हमारी एकता खण्डित होती है, जिसका राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मुझे लगता है करीब 70 प्रतिशत अपराधिक घटनाओं का कारण भूमि विवाद है।

आग्रह है कि राज्य की जनता न्याय प्रणाली एवं प्रशासन पर भरोसा रखे, कानून को अपने हाथ में न ले, अधिकार के प्रति सचेष्ट रहे लेकिन अपने कर्तव्य का भी ख्याल रखे।

मैं राज्य की जनता को आश्वस्त करना चाहूँगा कि यह न्यायधिकरण, निष्पक्ष, निर्भीक एवं न्यायसंगत तरीके से संयम के साथ त्वरित गति से इंसाफ देकर जन अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा।

कमजोर है नादाँ है, मुफलिस है, तवंगर है।
इंसाफ की नजर में हर शख्स बराबर है।।
     
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